
भारत सरकार ने एक बार फिर चीन के अरुणाचल प्रदेश को लेकर फर्ज़ी दावों को नकारते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि नाम बदलने से कोई हकीकत नहीं बदलती।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार को कहा:
“हमने देखा है कि चीन अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने के अपने बेकार और बेतुके प्रयासों में लगा हुआ है। हम ऐसी कोशिशों को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं।”
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अरुणाचल प्रदेश: भारत का अभिन्न हिस्सा
विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि:
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अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा।
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इस क्षेत्र पर चीन द्वारा दिया गया कोई भी नाम या बयान अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमा या हकीकत को नहीं बदल सकता।
भारत ने यह भी कहा कि ऐसे कदम केवल राजनीतिक दुष्प्रचार की श्रेणी में आते हैं, जिनका कोई ऐतिहासिक, कानूनी या भौगोलिक आधार नहीं है।
चीन की पुरानी आदत: नक्शे और नाम बदलने की राजनीति
चीन ने:
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दिसंबर 2022 में 15 स्थानों के नाम बदलने का दावा किया था।
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इससे पहले 2017 और 2021 में भी इसी तरह की सूची जारी की थी।
चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत” बताकर विवाद खड़ा करता है, जबकि भारत इसे पूरी तरह अस्वीकार करता है।
नेताओं की यात्राओं पर भी चीन को ऐतराज़
चीन ने:
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2020 में अमित शाह,
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2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,
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और 2021 में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के अरुणाचल दौरे पर आपत्ति जताई थी।
भारत ने हर बार दोहराया कि नेताओं का अरुणाचल दौरा पूरी तरह स्वाभाविक और आंतरिक मामला है।
शी जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात के बीच चीन का यह बयान
भारत के रणनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि:
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चीन रूस-चीन रिश्तों की गर्मजोशी और अमेरिका से टकराव के बीच भारत पर राजनयिक दबाव बनाना चाहता है।
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यह नामकरण की राजनीति “सूक्ष्म आक्रामकता” (Salami Slicing) की रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
अरुणाचल प्रदेश सिर्फ नक्शे में नहीं, बल्कि भारत के दिल और आत्मा का हिस्सा है।
चीन के बार-बार नाम बदलने की कवायद को भारत ने ना केवल खारिज किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे प्रयास अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में केवल दुष्प्रचार रहेंगे।
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